फिल्म अभिनेता और बीजेपी नेता शत्रुघ्न सिन्हा ने एक बार मुझसे कहा था कि किसी नेता या अभिनेता के मशहूर होने का पैमाना होता है कि उसके स्टाइल की कितनी नकल होती है. शत्रुघ्न सिन्हा ने कहा कि अमिताभ बच्चन के बाद सबसे ज़्यादा आज भी उनके स्टाइल की कॉपी की जाती है और दर्शक भी ताली बजाते हैं.
शत्रुघ्न अभिनेता के साथ नेता भी हैं इसलिए उनके लिए स्टाइल ऑइकन बनना आसान है पर किसी नेता के लिए अपने स्टाइल को आम लोगों के बीच पहुंचाना आसान नहीं होता है.
बिहार की राजनीति में अंदाज़ और स्टाइल– दोनों ही किसी नेता को अलग पहचान दिलाने में अहम रोल अदा करते हैं. एक ज़माने में लालू के देसी अक्खड़पन ने उन्हें ग़रीबों का मसीहा तक बना डाला. उस दौर में लालू स्टाइल बाल से लेकर उनके बोलने का अंदाज़ भी फैशन बन गया था. एक वक्त ऐसा भी था जब लालू खुद कहा करते थे कि मेरे बिना टीवी का न्यूज़ अधूरा है. उनको ध्यान में रखकर सिनेमा के पात्र तक गढ़े जाने लगे थे. लालू फिलहाल जेल में हैं. वह जब तक जेल में रहेंगे मीडिया की दुनिया में उनकी जगह खाली रहेगी.
बिहार में एक से एक धाकड़ नेता हैं पर किसी ने जनता के बीच अपनी छाप नहीं छोड़ी. पर एक नेता हैं जिनका डील-डौल ही नहीं बल्कि आवाज़ भी भारी-भरकम है. इन दिनों बीजेपी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के भयंकर समर्थक हैं. आम तौर पर टेलीविजन पर किसी न किसी विवादास्पद मुद्दे पर बयान देते हुए देखे जाते हैं. खास तौर पर जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर हमला करना हो. पंच लाइन तो ज़ोरदार होता ही है पर अंदाज़ भी कम धमाकेदार नहीं होता. इनका नाम है गिरिराज सिंह.
मैं पिछले कई साल से उनको जानता हूं. जब ये मंत्री नहीं थे तब भी और जब मंत्री बने तब भी. दोनों ही समय इनका रुतबा कमोबेश एक ही जैसा रहा. बीजेपी गाहे-बगाहे जेडीयू पर प्रहार करने के लिए इनका इस्तेमाल करती रही क्योंकि ये गरजने में माहिर हैं.
मुझे याद है सन 2012 का वह वक़्त जब जेडीयू और बीजेपी के बीच कई मुद्दों पर खींचतान चल रही थी तब गिरिराज के जिम्मे काम मिला जेडीयू को औकात दिखाने का. अपने अंदाज के कारण खूब दिखते और छपते भी रहे.
बिहार विधान परिषद में एमएलसी बनने और मंत्री बनने से पहले तक ये रोज़ बीजेपी के दफ्तर में एक छोटे से कमरे में बैठकर कार्यकर्ताओं से मिलते थे और मंत्री बनने से बर्खास्त होने तक अपना पुराना काम नहीं छोड़ा.
पहले फोन पर किसी भी कार्यकर्ता के कहने पर किसी भी तरह के काम के लिए किसी को भी फोन लगा देते थे. सामने वाले को कभी भईया, तो कभी सरकार, तो कभी सर लगाकर ही बात करते थे. बड़े से बड़े अधिकारी से लेकर अदने से किरानी तक को फोन करने में हिचकिचाते नहीं थे. खांटी देसी अंदाज़ में सामने वाले कार्यकर्ता को खुश कर देते थे. भले काम हो न हो पर कार्यकर्ता उनके ठेठ अंदाज़ से खुश होकर चला जाता था. पहले विपक्ष में थे. लालू-राबड़ी के काल में काम नहीं के बराबर होता था. अधिकारी भी उनकी बात नहीं सुनते थे पर लोगों की बात उन तक पहुंचाकर अपनी हाजिरी दर्ज ज़रूर करा देते थे.
सत्ता में आए तो तीन साल बाद मंत्रिमंडल विस्तार के समय मंत्री पद हाथ लगा. पर मंत्री जी का अंदाज़ नहीं बदला. हर रोज़ बीजेपी दफ्तर जाना नहीं छोड़ा. मंत्री बनने के बाद भी फोन पर सामने वाले को सर और बाबू-भैया कहना नहीं भूले. कई लोग इसे अपने ऊपर व्यंग्य समझते तो कई लोग मंत्री जी का इस वजह से आदर-सम्मान करते. पर मंत्री जी को उस वक्त काफी बुरा लगा जब एक जिले के एसपी साहब ने मंत्री जी को औकात दिखाने की बात कह दी. गिरिराज सिंह आग-बबूले होकर पहुंच गए मुख्यमंत्री के चेम्बर में, जम कर शिकायत की. मुख्यमंत्री ने भी एसपी को खुद तो नहीं डांटा लेकिन अपने ऑफिस के अधिकारियों से डांट पिलवायी. ऐसे कई वाक्ये हुए जिनसे गिरिराज सिंह की अलग पहचान बन गई. अब तो मोदी के समर्थक के रूप में उनकी राष्ट्रीय स्तर पर पहचान भी बन गई है.
नीतीश कुमार ने बीजेपी से नाता तोड़कर बीजेपी कोटे के सभी मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया. तमाम मंत्री (गिरिराज सिंह को छोड़कर सभी) इसे अपना अपमान समझते हैं. पर सिंह इसमें भी अपनी शान समझते हैं और बड़े गर्व से आज भी कार्यकर्ताओं के कहने पर अधिकारी से लेकर किरानी तक को फोन करते हैं और कहते हैं – हलो ! मैं बिहार का बर्खास्त मंत्री गिरिराज सिंह बोल रहा हूं. मैं मंत्री तो नहीं रहा पर आगे जय भोले! सामने वाला अगर समझदार रहा तो गिरिराज सिंह के अंदाज़ से ये पकड़ लेता है कि वो क्या चाहते हैं. काम हो न हो पर उनकी बात इत्मिनान से सुन लेते हैं.
गिरिराज सिंह इन दिनों बीजेपी के उन नेताओं के चहेते हो गए हैं जो खुद सामने तो नहीं आते हैं पर उनके देसी अंदाज़ का फायदा उठाना चाहते हैं. बिहार में आज कल बीजेपी के नेताओं में बयान देने की होड़ लगी हुई है. बीजेपी के दफ्तर से रोज़ किसी न किसी नेता के प्रेस वार्ता की सूचना रहती है. पर मीडिया वालों की दिलचस्पी वार्ता में कम गिरिराज सिंह के पंचलाइन पर ज्यादा होती है.
सिंह राजनीति में वामपंथ के रास्ते दक्षिणपंथी हो गए. 1952 में लक्खीसराय के बढ़इया में जन्में गिरिराज सिंह की पढ़ाई बेगुसराय और नालंदा में हुई. उन दिनों इन इलाकों में वामपंथियों की जड़े मजबूत थीं लिहाज़ा कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ गए लेकिन बाद में जेपी से प्रभावित हुए पर ज्यादा दिन तक समाज वादियों के चंगुल में नहीं रह पाए. और जय श्री राम का नारा लगाने पहुंच गए बीजेपी में. बीजेपी में युवा विंग में काफी सक्रिय रहे. किसान मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रहे पर ज़िंदगी में कभी चुनाव नहीं लड़ पाए. इसका अफसोस ज़रूर है पर इस बार नवादा से लोकसभा पहुंचने की तैयारी कर रहें हैं.
गिरिराज सिंह मंत्री रहते कभी नैनो कार में बैठ सुर्खिया बनाते तो कभी नीतीश कुमार को खुलेआम उन्हें हटाने के लिए चैलेंज करते. दरअसल गिरिराज सिंह बीजेपी में ना ही किसी को अपना आदर्श मानते हैं और ना ही मेंटर. इनका मानना है कि राजनीति में कोई किसी को आगे नहीं बढ़ाता है. सब आपका इस्तेमाल करते हैं और आप अपनी योग्यता से आगे बढ़ते हैं.
बीजेपी के अन्दर एक-दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ लगी हुई है और गिरिराज सिंह अपने आप को इसमें स्थापित करने के लिए पुरजोर कोशिश कर रहें हैं. कल तक नीतीश कुमार का गुनगान करने वाले सुशील मोदी जोड़ी टूटते ही नीतीश वंदना की जगह नीतीश के खिलाफ़ आग उगलने लगे. चारा घोटाला को लेकर झारखंड हाई कोर्ट में आए एक मामले की सुनवाई होनी है. गिरिराज सिंह ने नीतीश कुमार, शिवानंद तिवारी और ललन सिंह पर भी घोटालेबाजों से पैसे लेने का आरोप जड़ दिया. मामले ने तूल पकड़ा लेकिन सुशील मोदी ने इस मुद्दे को भी झटक लिया. लगे बयान देने. अब गिरिराज सिंह नए मुद्दे तलाशने में जुटे हैं. दूसरे नेता भले ही मुद्दे चुरा लें लेकिन यह अंदाज़ कहां से लाएंगे – नमस्कार मैं बर्खास्त मंत्री बोल रहा हूँ.
